कभी सुस्ती को दूर करती है,
तो कभी एक किताब खत्म करने का आधार बनती है।
कभी एक कवी का नशा बनती है,
तो कभी एक शिक्षक की ज़रुरत बनती है।
कभी कड़क होकर
किसीका दिल तोड़ती है।
तो कभी मीठी होकर
दिलों को जोड़ती भी है।
कभी रात भर जगाये रखती है,
तो कभी काम का बोझ भी संभाल लेती है।
आओ, उस साथी का करते हैं सम्मान।
एक कविता, अदरक वाली चाय के नाम।
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